इस लेख में माँ मंगला गौरी के गया के मंदिर के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे | मंदिर का महत्त्व ,पूजा की विधि,मंदिर तक कैसे पहुंचे और बहुत कुछ |
विषय सूचि :
| 1. | परिचय |
| 2. | पौराणिक कथा |
| 3. | मंदिर का वर्णन |
| 4. | आस्था का मंदिर |
| 5. | पूजा की विधि |
| 6. | मंदिर खुलने का समय |
| 7. | मंदिर पहुंचने का रास्ता |
मंदिर का वर्णन
माँ मंगला गौरी का मंदिर बिहार के गया जिला में है | माँ मंगला गौरी का मंदिर पौराणिक काल से विश्वविख्यात है, जहां हजारे श्रद्धालु माता के दर्शन करने, आशीर्वाद प्राप्त करने हर दिन आते हैं। माँ मंगला गौरी मंदिर 51शक्तिपीठों में से एक है।
माँ मंगला गौरी का मंदिर का वर्णन पुराणों और अन्य शास्त्रों में किया गया है | पध्म पुराण,वायु पुराण,अग्नि पुराण,देवी भागवत पुराण इत्यादि में माँ के मंदिर का वर्णन है | यह बहुत ही जागृत मंदिर है |
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सती के पिता दक्ष प्रजापति एक यज्ञ करवा रहे थे। जिसमे राजा दक्ष प्रजापति से अपने पुत्री सती के पति भगवान शिव जी का अपमान हो गया।
अपने पति के अपमान से देवी सती को बहुत गुस्सा आ गया और अग्नि में कुद कर उन्होंने अपना जीवन समाप्त कर दिया। जब महादेव जी को यह जानकारी मिली तो वे अपनी पत्नी ‘सती’ के मौत से बहुत क्रोधित हो गए।
यज्ञ स्थान पर पहुंचकर भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति के सर को छड़ से अलग कर दिया,और सती जी के मृत शरीर को हाथों में लेकर क्रोध से भयंकर तांडव प्रारंभ कर दिया।इससे पूरे ब्रह्मांड में भय व्याप्त हो गया।
सभी देवता संसार की रक्षा हेतु प्रयास करने लगे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली | तब सभी देवताओं ने विष्णु भगवान से शिवजी के गुस्से को शांत करने के लिए प्रार्थना किया।संसार की रक्षा हेतु और सभी देवताओं के प्रार्थना से भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मृत माता सती के शरीर के टुकड़े कर दिए जो संसार की अलग-अलग स्थानों पर गिरे।
पुराणों के अनुसार माता सती के 51 टुकड़े हो गए और अलग-अलग स्थानों पर गिरे| जहां जहां शरीर के भाग या माता सती कपड़े गहने गिरे पहुंचे वहां वहां शक्तिपीठ बन गए। शक्ति प्राप्त करने का स्थान हो गया| वहां देवी का वास स्थान हो गया, दुर्गा मां का निवास हो गया| वह स्थान जागृत हो जाता है ,पूजा और उपासना से यहां शक्ति एवं मनोबांछित वर प्राप्त होता है।
गया में भस्मकूट पर्वत पर देवी सती का वक्ष गिरा था,जो दो टुकड़ो में दो शिलाओं पर विरजमान हो गए | भस्मकूट पर्वत पर मंदिर के गर्भ गृह में पर्वत पर दो शिलाओं पर देवी माँ विराजती हैं | मंदिर के गर्भ गृह में दो शिलाओं पर देवी माँ के दो मूर्तियां विराजती हैं | मंदिर में माँ काली, भगवान शंकर ,विष्णु और गणेश जी की यहां मूर्तियां है।
मंदिर का वर्णन
इस मंदिर की स्थापना १५ वी० शताब्दी में गुफा शैली में गया में हुई थी | यह मंदिर गया में भस्मकूट पर्वत जो मंगला गौरी पर्वत के नाम से भी जाना जाता है,के चोटी पर बना है| यह मंदिर लगभग ४५० फ़ीट की ऊंचाई पर है| जँहा जाने के लिए सीढ़ियां है |
मंदिर के सीढ़ियां शुरु होते ही एक ओर भीम जी ( पांच पांडवो में एक ) का मंदिर है| जिस मंदिर का नाम भीमा देवी भी है | मान्यता है की सीढ़ियां पर श्री भीम के ठेहुना का निशान है| मान्यता के अनुसार द्वापर में भीम जे ने माँ के सामने झुककर पार्थना किया और आशीर्वाद प्राप्त किया|
पुराणों के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्री राम जी इस मंदिर में आए थे और माता का आशीर्वाद प्राप्त किया| और भी कई भगवान ने यहां आकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त किया|
आस्था का मंदिर
गर्भगृह के ठीक सामने एक बड़ा हाल है और एक हवन कुंड है जंहा अग्नि में लगातार हवन सामाग्री समर्पित होते रहती हैं। यहाँ महाज्योति प्रज्वलित है|
भगवान विष्णु को संसार का पालन करता माना गया है | माँ को भी संसार का पालन हार देवी माना गया है| यह मंदिर प्राचीन काल से हजारों करोड़ों लोगों के आस्था का मंदिर है|
वैसे तो हर दिन माता आशीर्वाद देती हैं परंतु मंगलवार, शनिवार को बहुत ज्यादा भक्त आशीर्वाद प्राप्त करने जाते हैं।हर दिन हजारों भक्त माता के दरबार में आते हैं, परन्तु मंगलवार,शनिवार,और नवरात्रि में भक्तों की भीड़ बहुत ज्यादा होती है।
नवरात्री के महासप्तमी को महानिशा पूजा, महाअष्ट्मी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री देवी की पूजा होती है। विजयादशमी को अपराजिता पूजन, अस्त्र शस्त्र की पूजा और शांति पूजन किया जाता है।
पूजा की विधि
यहाँ वैदिक और तांत्रिक विधियों से पूजा होती है। वैदिक पूजा सार्वजनिक होती हैं।तांत्रिक पूजा भगवती की पूजा-मंदिर के पट बंद रहने पर 10 मिनट के लगभग की होती है।
यह मंदिर कालिक मंत्र की सिद्धि के लिए बहुत प्रसिद्ध है।
माँ की पूजा सिन्दूर, चुनरी ,साडी श्रृंगार के सामग्री प्रसाद, फूलों से की जाती है। यहाँ नारियल चढाने का प्रचलन है। माँ को लाल उड़हुल का फूल बहुत पसंद है तो लाल उड़हुल के फूल और माला चढ़ाया जाता है।भजन किर्तन किया जाता है और आरती उतारी जाती है|
माँ के महिमा ,शक्ति एवं दयालुपन को बताने के लिए कोई शब्द नहीं है|
सच्चे मन से किया गया पूजा से मां प्रसन्न होती है और मनोवांछित फल देती है, मनोकामनएं पूर्ण करती हैं।
मंदिर खुलने का समय
यह मंदिर प्रत्येक दिन सुबह 6 बजे से रात 10 बजे मंदिर तक सभी के लिए खुला रहता है। दोपहर 12- 02 बजे तक पट बंद रहता है।
मंदिर पहुंचने का रास्ता
गया शहर वायु मार्ग ,रेल और सड़क मार्ग से हर जगह से जुड़ा है |गया जंक्शन से लगभग ३ किलोमीटर और एयरोड्राम से लगभग ५ किलोमीटर दूर यह मंदिर विरजमान है। शहर में हमेशा कार,टैक्सी और रिक्शा इत्यादि हर वक्त उपलब्ध होता है।
अस्वीकरण: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार विभिन्न लेखों]संचार माध्यमों से लिए गए है और सभी सूचनाएँ मूल रुप से प्रस्तुत की गईं है| व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार नहीं हैं तथा इसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है|
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